Tuesday, 11 July 2017

जिसे है बस इंतज़ार

कुछ सच हैं यहां,
मेरे ज़ेहन के भीतर 
बिखरे हुए कुछ झूठ भी हैं,
डरे सहमे दुबके से,
और है एक कहानी,
जिसे है बस इंतज़ार,
की वो कह दे मुझे  ,
जो है नहीं यहां,
वो है एक हर्फ़,
टूट गया था कभी,
गिरा था आसमानों से,
आज उस हर्फ़ को कोई,
फिर ढूंढता फिरता है 
की वो कहानी जो 
कही जानी है अभी,
मुक़म्मल हो.
और हर्फ़ फिर से जुड़ 
लिखे एक प्रेम भरी कविता 
सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे लिए

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