Wednesday, 19 July 2017

ये तेरी मांग का रंग

शाम की दहलीज़    
और सूरज की 
सुर्ख पगडंडी पर 
तैरता लावा  
रिसते हुए मेरे  
खून से बनी 
तेरे माथे की 
वो लकीर है  
जिसके उस पार 
उतरने की जद्दोजहद 
मेरे जिस्म के 
आखरी कतरे तक 
जगनू सी चमकती 
रहती है सदा 
ये तेरी मांग 
का रंग मुझे
किसी भी हद्द  
से गुजरने को 
प्रेरित करता रहता है 

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