उसके सही वक़्त
के इंतज़ार में मेरी
ज़िन्दगी गुजर रही है
रफ्ता रफ्ता
वो बैठा सोच रहा
समय उसे छू कर
गुजरे जा रहा
जब तक सही
वक़्त आएगा
वक़्त के निशां
चेहरे पर नज़र
आ ही जायेंगे
तब गीली पलकों
को क्या छुअन
की सिरहन पोंछ
पाएंगी !
उसके सही वक़्त
के इंतज़ार में मेरी
ज़िन्दगी गुजर रही है
रफ्ता रफ्ता
वो बैठा सोच रहा
समय उसे छू कर
गुजरे जा रहा
जब तक सही
वक़्त आएगा
वक़्त के निशां
चेहरे पर नज़र
आ ही जायेंगे
तब गीली पलकों
को क्या छुअन
की सिरहन पोंछ
पाएंगी !
ये सच है कि प्रेम पहले ह्रदय को छूता है मगर ये भी उतना ही सच है कि प्रगाढ़ वो देह को पाकर होता है !