Wednesday, 20 March 2019

मेरा इश्क़ !

मेरा इश्क़ 
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इश्क मेरा हर्फों, 
में उतरता रहा; 

मैं पागल था, 
उम्र भर लिखता रहा ;

छू रहे थे हर्फ,
लोगों के दिलों को मगर ;

मैं बस चंद वाह,
वाही लूटता रहा; 

अगर भूख होती तो, 
कब की मिट गई होती, 

मैं था मोहब्बत का प्यासा, 
रेगिस्तान में द्रव्यवती ढुंढता रहा ;

बदलते है लोग यहां,
मौसमों की ही तरह;

रंग मेरा भी निखरा पर,
मैं उसके रंग में ढलता रहा; 

उसको जल्दी थी,
उसने बदल ली मंजिल मगर,

मैं समंदर की ही तरह,
अपनी नदी का इंतजार करता रहा !

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