Thursday, 14 March 2019

क्यों लम्हें बिखरे है !

क्यों लम्हें बिखरे है !
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एक सिर्फ तेरे बिना,
क्यों रात की ये कालिमा है;
क्यों किरणों से तपता ये दिन है ! 

एक सिर्फ तेरे बिना,
क्यों आसमान गुमसुम सा है;
क्यों हवा रूखी-रूखी सी है !

एक सिर्फ तेरे बिना,
क्यों लम्हें बिखरे बिखरे से हैं;
क्यों यादों के प्रतिबिम्ब ओझल से है ! 

एक सिर्फ तेरे बिना,
क्यों आँहे कुछ यूँ बरबस सी है; 
क्यों दिन उदास-उदास से है !

एक सिर्फ तेरे बिना,
क्यों सुबह की ख्वाइश अधूरी है;
क्यों लेटे रहना अब मुश्किल है !

एक सिर्फ तेरे बिना,
क्यों अकेले चलते रहना भारी है;
क्यों ये पदचिन्ह भी भटके भटके है ! 

एक सिर्फ तेरे बिना,
क्यों हर एक पल आँखों से ओझल है;
क्यों मेरी परछाईं स्थिर सी है !

एक सिर्फ तेरे बिना,
क्यों अब तस्वीरें चुभती सी हैं;
क्यों सिमट रहा जीवन प्रतिदिन है !

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