Monday, 4 September 2017

रात और दिन मिलते है


हर रात ही अपनी 
राह खोजता रहा 
मेरा मन कितनी ही 
निराशाओं के गलियारों 
से गुजरता हुआ
जब तक की रात 
अपने दिन से मिल 
अभिभूत नहीं हो जाती 
और जब छाने 
लगता है उजाला
हवाएं धीमी धीमी हो 
बंद हो जाती है
फिर वही मेरा मन 
होकर उदास 
निकल पड़ता है 
अपनी राह पर 
खाली हाथ 

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