Wednesday 13 September 2017

प्रेम भरे पत्रों की टोकरिया

आज भी मेरे 
कमरे की खिड़कियों से 
अंदर तक आती है 
अक्सर मई की 
धुप की किरणे 
मेरे कमरे की 
टेबल पर रखी है 
अनुत्तरित 
प्रेम भरे पत्रों की 
टोकरिया जो भी 
देखता है उन्हें
कहता हुआ जाता है
कितना नासमझ 
रहता है यंहा

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !