Wednesday, 20 September 2017

कडुआ सा उन्नीदापन

अक्सर जब होता हु अकेला
एक कडुआ सा उन्नीदापन
आ जाता है पास मेरे अपने 
दिए जलाने उस वक़्त मेरा
दिल चाहता है अपने लिखे 
सारे प्रेम पत्र मैं उन्ही सियाही 
को लौटा दू जिन सियाही से 
वो लिखे थे मैंने तब मैं अकेले में
पढता हु अपनी देह को और
देखता हु कितना हिस्सा 
अपनी देह का मैंने बोया था 
तुम्हारी जमी पर ? 

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