Monday 25 September 2017

उम्मीद में विस्वाश निहित था

उम्मीदों के साथ 
जिया जा रहा था 
उम्मीद में ही निहित था
मेरा विस्वाश भी की 
इस धरती पर वो सब 
सच है जिसे हम छू पाते है 
जिसे हम सुन पाते है 
जिसे हम देख पाते है 
पर ना जाने किन्यु 
तुम्हे सुनने के बाद
तुम्हे छूने के बाद
और तुम्हे अच्छी से 
देखने के बाद भी 
आज तक मेरे लिए
स्वप्न ही बनी हुई हो तुम

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !