Tuesday 19 September 2017

बिना प्रीतम की रातें

बिना प्रीतम की रातें
और रातें बिताना 
उसके साथ जिसे 
तुम प्रेम नहीं करती 
ऐसे जैसे तपते माथे
पर चमकते बड़े-बड़े
सितारे और ऊपर उठती
वो तुम्हारी गहरी बाहें 
'प्रीतम' तक पहुँचने 
की कोशिश करतीं
जो यंहा जाने कबसे 
नहीं था और होगा 
भी तो कैसे ये उसका
घर नहीं जंहा तुम हो अबतक
और तुम्हे होना चाहिए था वंहा 
अब तुम्हारी आँखों से टपकते आंसू
प्रीतम के लिए और वंहा प्रीतम
की आँखों से टपकते आंसू
उसके लिए जिसे उसने अथाह
प्रेम किया था ये सोच कर 
की प्रेम के लिए कुछ भी असंभव नहीं 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !