Saturday, 23 September 2017

तुम कभी नहीं थी साथ मेरे

तुम कभी नहीं थी
साथ मेरे ये तो बस
मैं था जो बार-बार 
तुम्हारी तमाम गलतियों
के बावजूद तुम्हारे 
पास चला आता था 
मेरे पास कोई और 
दूसरा रास्ता भी कंहा था
तुम्हारे बगैर सांसें भी 
आती कंहा है अंदर
यु लगता है जैसे 
दम बस घुट रहा हो 
और सबको पता है 
इंसान का दम जब घुटता है 
उस वक़्त वो कितना तड़पता है 
उस दम घुटने को बर्दास्त ही तो
नहीं कर पाता था मैं और 
उस से बचने के लिए दौड़ा
चला आता था पास तुम्हारे 
लेकिन अब दर्द इतना सह लिया 
की वो तड़प कम लगने लगी    

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