Wednesday 27 September 2017

प्रेम का अंत बहुत कष्टदायी होता है

मैंने तुम्हे प्रेम किया था 
तुम्हे बिना पूरी तरह समझे
बिना किसी अभिमान के किन्यु की 
तुम्हे देख कर ही जाना था मैंने की 
प्रेम किया नहीं जाता प्रेम हो जाता है 
तुम्हे प्रेम कर के ही तो जाना था 
मैंने फर्क मैं और तुम का बिना किसी 
भी जटिलता के बिना किसी समझाईश के 
मैंने तुम्हे प्रेम किया था जैसे आत्मा करती है 
उस तन को जिसमे वो आत्मसात रहती है पर 
अब ऐसा लगता है जैसे प्रेम करने से पहले मुझे 
तुम्हे अच्छी तरह जानना चाहिए था किन्यु की 
एक तरफ़ा प्रेम का अंत बहुत कष्टदायी होता है

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !