Tuesday, 7 May 2019

अंधेरों को कोसते लम्हे !

अंधेरों को कोसते लम्हे !
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
जिस तरह किसी, 
मुफ़लिस की तकदीर का, 
सितारा बहुत दूर कहीं अँधेरी, 
राहों में भटक कर दम तोड़ रहा है; 
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
शाम होते ही बस्ती, 
का चप्पा-चप्पा घुप्प, 
अंधेरों में डूब जाता है;
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
ऐसे में सुनने की, 
ताकत से सरगोशियां, 
करते हुए सन्नाटें है, और 
अंधेरों को कोसते हुए लम्हे है; 
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
और दूर से आती हुई, 
किसी बेबस की पुकार, 
जब एहसासों से टकराती है;
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
तब थरथराते हुए, 
वज़ूद दुआओं में लीन, 
हो कर ख़ुदा को आवाज़ देते है !

No comments:

स्पर्शों

तेरे अनुप्राणित स्पर्शों में मेरा समस्त अस्तित्व विलीन-सा है, ये उद्भूत भावधाराएँ अब तेरी अंक-शरण ही अभयी प्रवीण-सा है। ~डाॅ सियाराम 'प...