Wednesday, 1 May 2019

सुनो..


सुनो..
जिस की हंसी से ही, 
मेरे ह्रदय की बंज़र 
जमीन पर भी, तरह 
तरह के फूल खिलते है;
सुनो..
जिन के नग्मों की, 
इतनी पहुँच है की, 
पंछी उन की लय 
पर चहचहाते हैं;
सुनो..
उस को तो इस तरह, 
चुप-चाप हो जाना, 
बिलकुल नहीं सजता है;
सुनो..
तुम बस इतना ही करो, 
की एक बार बस हँस दो, 
ताकि मेरी जमी हुई साँसों 
में फिर से, ज़िंदगी जी उठे; 
सुनो..
क्योंकि तुम्हारी हंसी से ही, 
मेरे ह्रदय की बंज़र जमीन, 
पर भी तरह तरह के फूल 
खिलते है !

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