Sunday 18 February 2018

तेरी बेरुखी


ए ज़िन्दगी 
तंग आ गया हु
तेरे इन नखरों से 
तेरी इस बेरुखी से 
तेरी इन मज़बूरिओं से 
तेरे इन झूठे वादों से 
जी चाहता है अब
इन झंझावातों से 
निकल आउ और 
बहुँ बहते पानी सा,
बहुँ मद्धिम पवन सा
झरझर झरते झरने सा
निश्चिन्त हो 
हल्का हल्का सा 
और एक दिन चुपचाप 
शांत हो जाऊ 
इसी प्रक्रिया में ..
दूर बहुत दूर चला जाऊ 
तेरे इन नखरों से 
तेरी इस बेरुखी से 
तेरी इन मज़बूरिओं से 
तेरे इन झूठे वादों से 
ए ज़िन्दगी 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !