Monday 26 February 2018

अद्भुद सुख की अनुभूति


सुकोमलता से भरी प्रकृति 
किस प्रकार सृजन की प्रक्रिया से 
गुजरती है इससे शायद ही कोई 
पूरी तरह परिचित हुआ है अब तक 
कुछ ना कुछ तो स्वयं प्रकृति से भी 
छूट ही जाता है जब वो निढाल हुई 
होती है तब वो किस किस 
परिस्थिति से गुजरती है 
शायद उसने भी सृजन के पहले 
इसकी कल्पना नहीं की होती है 
तभी तो वो सब कुछ सहज सह लेती है 
आँख बंद होने की प्रक्रिया से लेकर
सिसकियाँ निकलने तक में और
धीमी गति से लेकर बढ़ती बलगति तक
सुकोमल कसाव से लेकर निर्मम
व कठोर कसाव तक की प्रक्रिया में
भी वो अद्भुद सुख की अनुभूति के
साथ साथ पीड़ा सहकर सृजन करती है
शायद ही कोई महसूस कर सकता है 
की कठोरता को किस प्रकार सुकोमलता 
तरलता में परिवर्तित कर देती है 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !