Monday, 26 February 2018

कितना अच्छा हो



लोगो की भीड़ से घिरी 
तुम्हारे पास आने को  
आतुर घबराई सी जड़वत 
वंही खड़ी हु पिछले तकरीबन 
पांच साल से ;सोचती हुई 
की कैसे आ पाउंगी पास तुम्हारे
बिना किसी को बताये 
बिना किसी से रास्ता पूछे
बिना अब और घबराये 
बिना किसी के बहकावे में आये
बिना किसी को दर्द दिए  
लोगो की भीड़ से घिरी 
तुम्हारे पास आने को  
आतुर घबराई सी जड़वत 
वंही खड़ी हु पिछले तकरीबन 
पांच साल से ;सोचती हुई
की ना आने से भी गर तुम
यु ही बने रहो मेरे जीने की वजह 
तो कितना अच्छा हो 

No comments:

स्पर्शों

तेरे अनुप्राणित स्पर्शों में मेरा समस्त अस्तित्व विलीन-सा है, ये उद्भूत भावधाराएँ अब तेरी अंक-शरण ही अभयी प्रवीण-सा है। ~डाॅ सियाराम 'प...