Saturday, 24 February 2018

जिद्दी चाँद


सुनो तुम समझाओ ना 
अपने इस जिद्दी चाँद को 
तुम्हारे लिए कभी 
दूज का तो कभी 
हरतालिका तीज का 
तो कभी करवा चौथ का
और कुछ ना मिले तो 
कभी पूनम का कभी
अमावस का हुआ फिरता है 
मुझे डर है कंही ये घटते 
बढ़ते इस क्रम में बुझ ना जाए 
फिर मत कहना कोई तो मुझे
बतलाता मैं उसे समझाती ना   
सुनो तुम समझाओ ना 
अपने इस जिद्दी चाँद को 

No comments:

स्पर्शों

तेरे अनुप्राणित स्पर्शों में मेरा समस्त अस्तित्व विलीन-सा है, ये उद्भूत भावधाराएँ अब तेरी अंक-शरण ही अभयी प्रवीण-सा है। ~डाॅ सियाराम 'प...