Friday, 2 February 2018

कभी तो मिलो तुम मुझे

कभी तो मिलो तुम मुझे
बरसती बारिश की बूंदो में    
तब मैं समां जाऊंगा तुम्हारे 
लरजते इस सीने में बनकर 
बरसती बारिश की बूंदो सा 
कभी तो मिलो तुम मुझे
जब चले धीरे धीरे वो पुरवाइयाँ 
उतर जाऊँगा मैं तेरे कानो में 
बनकर पपीहे की पीहू पीहू  
कभी तो चलो तुम इस डगर 
पर मेरे पैरो पर अपने पैरो रखकर
ताकि दिखा सकू तुम्हे मैं तुम्हे 
डगर अपनी मंज़िलों की   
कभी तो मिलो तुम मुझे
इन काली स्याह रातों में 
ताकि मैं महसूस सकू 
मायने इन स्याह रातों के 
कभी तो मिलो मुझे सुबह के  पहर  
ताकि देख सकु सुबह के सूरज 
की तीक्ष्ण किरणों को 
हां कभी तो मिलो तुम मुझे

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