Monday, 8 April 2019

मुतमईन सकून !

मुतमईन सकून ! 

रात के फैलते इस...  
सन्नाटों में;

दिल की कैद में एक 
याद का दीपक सा जलता है;
  
उसकी लौ फड़फड़ाती... 
है बहुत;

वादी-ए-हिज़्र से अक्सर... 
ही आती है सदाएं बहुत;

आकर वो सीने में... 
गूंजती है बहुत...

एक नाम से अचंभित...
आस भी हुई ज़िंदा;

पर एक सकून है जो... 
वहशत में भी मुतमईन 
है बहुत !  

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