Wednesday, 10 January 2018

तुम ही मेरी दुनिया हो

जो कहते नहीं थकती थी 
तुम ही मेरी दुनिया हो 
तुम ही मेरा सूरज 
तुम ही मेरा चाँद हो
इन्ही शब्दों पर कर 
ऐतबार मैंने तुम्हारे 
हिस्से के पुरे आसमान 
पर अपनी तमाम उम्र  
लिख दी तुम सिर्फ 
इतना ही कर देना 
धरती पर एक अर्थी 
बिछे उतने ही हिस्से पर
लिख देना की तुझमे 
उस हिस्से जितना प्रेम 
करने की हिम्मत है  
तो मैं मान लूंगा इस 
ज़िन्दगी का एक नाम 
सुख भी था नहीं तो 
मैं सिर्फ ये समझूंगा  
उन सब्दो को जब 
अर्थ देना का समय 
आया तो तुम्हारा प्रेम 
चार इंच की दहलीज़ 
भी पार करने की हिम्मत
नहीं कर पाया 

No comments:

स्पर्शों

तेरे अनुप्राणित स्पर्शों में मेरा समस्त अस्तित्व विलीन-सा है, ये उद्भूत भावधाराएँ अब तेरी अंक-शरण ही अभयी प्रवीण-सा है। ~डाॅ सियाराम 'प...