Monday, 1 January 2018

सिहरन की पगडण्डी

सिहरन की पगडण्डी 
पर चलते चलते देखो
कैसे मेरे रोंये खड़े हो रहे है; 
तुम्हारी आद्रता को महसूस 
करते करते लिख रहे है
मेरे रग रग पर तुम्हारा नाम;
और मैं बैठा हर पल तुम्हारी 
धड़कनो के सिहराने सुन रहा हु;
दस्तक अपने अधूरे सपनो की 
अक्सर सुला देता हु उन्हें झूठी
तसल्ली देकर लेकिन; फिर जब 
तुम उन्हें सहला देती हो वो फिर
एक बार ज़िद्द पर अड़ जाते है 
और मेरे कदम से कदम मिला
एक बार फिर चल पड़ते है 
सिहरन की पगडण्डी पर 

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