Friday, 15 February 2019

वेदनाओं का समंदर !

वेदनाओं का समंदर !
•••••••••••••••••••••••
तेरे दो बून्द आंसू 
के मेरी वेदनाओं का 
समंदर है;

ये ज्ञात है तुझे और  
तेरा मुस्कुराना मेरी 
सृष्टि का चलना है;

ये भी ज्ञात है तुझे
और मेरे आंगन में 
तुम्हारा होना मेरे 
भाग्य का उदय होना है;

ये भी ज्ञात है तुझे;
और तेरे ह्रदय में
मेरी मौजूदगी ही 
मेरी सम्पूर्णता है;

है ये भी ज्ञात तुझे;
फिर क्यों तुम अब 
भी इतनी दूर हो 
मुझसे अब तक;

ये ज्ञात नहीं है मुझे;
अब तक ...आज इस 
प्रेम के मिलन के दिन  
बतला दो न तुम मुझे !

No comments:

स्पर्शों

तेरे अनुप्राणित स्पर्शों में मेरा समस्त अस्तित्व विलीन-सा है, ये उद्भूत भावधाराएँ अब तेरी अंक-शरण ही अभयी प्रवीण-सा है। ~डाॅ सियाराम 'प...