Wednesday, 13 February 2019

स्निग्ध स्पर्श !

स्निग्ध स्पर्श !
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ज़िन्दगी को इतने 
करीब से पहले कभी, 
महसूस नहीं किया 
था मैंने;

जब तुम्हारे होठों के 
स्निग्ध स्पर्श को पाया, 
तो जाना कैसे कोमलता 
कठोरता को एक पल में, 
तरल कर देती है;

जब तुम्हारे होठों के 
स्निग्ध स्पर्श को पाया, 
तो जाना मेरे भाग्य में, 
लिखी सबसे बड़ी उपलब्धि 
हो तुम;

जब तुम्हारे होठों के 
स्निग्ध स्पर्श को पाया, 
तो जाना कैसे कोई शब्द, 
इन होंठो से लगकर सुरीली 
धुन बन जाते है;

जब तुम्हारे होठों के 
स्निग्ध स्पर्श को पाया, 
तो जाना इन्ही होठों से 
निकली पुकार, प्रार्थना बन 
रिझा सकती है, किसी भी 
रुष्ट देव को;
  
जब तुम्हारे होठों के 
स्निग्ध स्पर्श को पाया, 
तो जाना मरने वाला कोई   
अपनी ज़िन्दगी को चाहता  
है कैसे !

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