Tuesday, 7 November 2017

तन्हाई के बादल

विरह का सावन 
ही देखा है मैंने  
अब तक जंहा 
तन्हाई के बादल 
घेरे रहते है और 
मेरे दिल की गीली 
ज़मीन पर बोया हुआ 
तुम्हारी यादों का बीज
अंकुरित हो उठता है...
आँखों के मानसून से
भीग उठती है 
दिल की कायनात
वक्त की गर्द से ढकी
मेरे संयम की दीवार का 
ज़र्रा ज़र्रा चमक उठता है 
धुलकर और तब
तेरे और मेरे बीच
नहीं रहता वक्त का फासला
रूहें मिलती हैं पूरी शिद्दत से
और मोहब्बत को मिलते हैं
नए मायने....

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