Saturday, 18 November 2017

आँखें समंदर हुए जाती है

सोचा था इस 
मेरी मुट्ठी में  
संभाल कर और  
सबसे छुपा कर 
रख लूंगा तुम्हे ,
बड़े जतन से 
बंद की थी मुट्ठी 
मैंने रख कर 
तुम्हे यु अंदर ,
पर न जाने कैसे 
और कब तू फिसल 
गयी यु समय की 
तरह और छोड़ गयी 
सूखी रेट की तरह 
किरकिरी मेरी ही 
मुट्ठी में और 
जब देखता हु अब
खुद की मुट्ठी तो 
आँखें समंदर हुए
जाती है  ..

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