Monday, 13 November 2017

एक हसीं सी शाम

एक परिधि है
मेरी जहाँ मेरे 
बीतते दिन 
के सूरज की 
आखिरी किरण 
मेरे इस प्यारी सी  
चाँद की चांदनी 
को देखकर 
थोड़ी सी सकुचाते हुए 
अपने दिन को 
अलविदा कर देती हैं, 
और एक हसीं सी 
शाम मेरे नाम यु 
रोज कर जाती हैं...

No comments:

स्पर्शों

तेरे अनुप्राणित स्पर्शों में मेरा समस्त अस्तित्व विलीन-सा है, ये उद्भूत भावधाराएँ अब तेरी अंक-शरण ही अभयी प्रवीण-सा है। ~डाॅ सियाराम 'प...