Wednesday, 8 January 2020

हां तुम्हे प्रेम है !


शायद तुम्हे प्रेम है ; 
उन फूलों से जिनकी 
सांसों से तुम्हे मेरी 
महक मिलती है !
शायद तुम्हे प्रेम है ;
उस एक आईने से 
जिसकी आँखों में 
तुम्हे मैं नज़र आता हूँ !
शायद तुम्हे प्रेम है ;
उस सियाह रात से 
जिसकी ख़ामोशी में 
तुम मेरी आवाज़ अपनी 
देह पर लिखती हो !
शायद तुम्हे प्रेम है ;
उस एक खुदा से 
जिसकी इनायत से 
तुमने मुझे पाया है !
शायद नहीं अब तो 
यकीन हो गया है मुझे 
तुम्हे बेइंतेहा प्रेम 
हो गया है मुझ से !
तब ही तो मेरी एक 
आहट भंग कर देती है 
तुम्हारी सम्पूर्ण साधना !
मैं इसी यक़ीं पर 
रोज मांजता हूँ 
अपनी ये काया !
और रोज अपनी एक 
नई छवि बनाता हूँ
हर वो रूप धरता हूँ 
जो तुम्हे भाता है !     

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