Monday, 6 January 2020

उदासी का सबब !


उदासी का सबब !

मैं किस किस को 
बताती अपनी इस 
उदासी का सबब !
मैं किस किस से 
पूछती एक ऐसी 
उदासी के बारे जिस  
में किसी तरह की कोई 
बेचैनी ही ना थी !
हर तरफ फ़ैली इस 
बिना वजह की उदासी 
भी तो एक तरह की 
रूमानी ही होती है ! 
मैं बस उसे एक टक 
देखती रही वजहों पर 
उस से बेवज़ह की 
बहस क्या करती ! 
कभी कभी बेवजह 
कुछ करने में भी इस 
दिल को बड़ा ही सकूँ 
मिलता है !

No comments:

स्पर्शों

तेरे अनुप्राणित स्पर्शों में मेरा समस्त अस्तित्व विलीन-सा है, ये उद्भूत भावधाराएँ अब तेरी अंक-शरण ही अभयी प्रवीण-सा है। ~डाॅ सियाराम 'प...