Sunday, 23 June 2019

ख्वाहिशें !


ख्वाहिशें !

बारिश की इन 
बूंदों के साथ हम 
और तुम खेले है
इन बूंदों के लिये ही
मिले और बिछड़े है
तुम्हारी जिद्द इन 
बूंदों को पकड़ लेने की
मेरी जिद इन बूंदों में 
साथ तुम्हारे भीग जाने की
ख्वाहिशें चाहे हमारी अलग हो
बारिश की बूंदों के साथ
खेलने की चाह एक थी
ठीक वैसे ही जैसे 
तुम मेरे पास आना 
चाहती हो पर किसी का
दिल दुखाये बगैर और
मैंने ठान रखा है नहीं 
जीना तेरे बगैर चाहे 
ख़ुदा को करना पड़े 
मुझे नाराज़ !

No comments:

स्पर्शों

तेरे अनुप्राणित स्पर्शों में मेरा समस्त अस्तित्व विलीन-सा है, ये उद्भूत भावधाराएँ अब तेरी अंक-शरण ही अभयी प्रवीण-सा है। ~डाॅ सियाराम 'प...