Tuesday, 18 June 2019

वस्ल का जादू !




तुझ से बिछड़ कर, 
जब खुद को पाया;  
तब जाकर अपनी, 
पहचान का लम्हा; 
अपने करीब आया !

लोग अतिशों से, 
उजाला कर रहे थे; 
लेकिन मैंने मिट्टी, 
का दिया अपनाया ! 

एक पल थी तब, 
एक सदी पर भारी;
तेरी चाहत में ऐसा, 
भी लम्हा आया !

पाँव छलनी थे, 
वफ़ा मेरी घायल थी; 
जाने क्यूँ उस मोड़ पर, 
भी तेरा पता याद आया ! 

एक लम्हे के, 
वस्ल का जादू;
तुझमे समाए तो, 
समझ में आया ! 

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