Monday 6 August 2018

किरदार नहीं निभाया

किरदार नहीं निभाया
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तुम्हारी गुलामी मैंने स्वीकारी
क्यूंकि मेरी ज़िन्दगी और तुम्हारी 
ख़ुशी इसी में थी और इसमें तुम्हारा  
कुछ जाता नहीं दिख रहा था तुम्हे 
बेशक तुम्हारी बेड़ियों ने तुझे पहले 
से ही जकड रखा था मगर   
रूह तो आज़ाद थी तुम्हारी   
और तुम्हारा अपना कुछ 
वक्त भी था आज़ाद लेकिन 
कुछ पीछे छूट रहा था मेरा 
वो वक्त और आगे बढ़ता 
जा रहा था मैं उसके बीच में   
तुम खड़ी थी लेकिन थी स्थिर
गतिहीन और संतुष्ट पुरानी 
उन्ही बेड़ियों में जकड़े अपने 
शरीर को देखते हुए उसी पुराने
अंदाज़ में ज़ाहिर था अपनी 
इस कहानी में तुम्हारे प्रेम ने 
कोई किरदार अभी तक नहीं निभाया 
क्या ये सच में तुम्हारा प्यार है ?
कभी सोचना अकेले में बैठकर !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !