Tuesday 28 August 2018

दिल का बिछौना

दिल का बिछौना 
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मैंने कहा और कई 
बार कहा तुम्हे मेरी  
आँखों में बसी हो तुम 
तुमने पूछा कहाँ दिखती  
तो नहीं मैंने कहा दिल में 
उतर जाती हो जैसे ही 
तुम्हारी नजर मेरी नज़रों  
को देखती है जैसे कई बार 
चाँद आसमां के पहलु से 
उतरकर झील के ठन्डे 
नर्म बिछौने में चला जाता 
है सोने थककर चकोर की 
लुका छुपी के खेल से उसी 
तरह तुम भी सोने चली 
जाती हो नरम नरम मेरे 
दिल के बिछौने पर जब भी 
मैं आना चाहता हु एक और 
बार तुम्हारे करीब बोलो ऐसा  
ही करती हो ना तुम अक्सर
मेरे साथ मुझे अपने बेहद 
करीब बुलाने के लिए !  

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !