Sunday, 26 August 2018

पता है ना तुम्हे


पता है ना तुम्हे 
------------------
देखो अगले कुछ ही 
दिनों में फिर से दिन 
छोटे और रातें लम्बी 
होने लगेंगी और फिर 
यादें तुम्हारी मुझे इन 
लम्बी रातों में अकेले 
जागने को मज़बूर करेंगी 
और फिर पूरी की पूरी रात
गुनगुनाऊँगा मैं तुम पर लिखी
अपनी नयी-नयी प्रेम कवितायेँ
और वो बन जाएँगी मेरे प्रेम गीत 
जिन्हे में रातों के सबसे सुनसान 
लम्हो में माचिस की तीली की तरह
इस्तेमाल करूँगा अँधेरी रातों में अकेले
जागने के लिए तुम्हे तो पता ही होगा ना 
यु लम्बी रातें अकेले जागी नहीं जाती बोलो ?    

No comments:

स्पर्शों

तेरे अनुप्राणित स्पर्शों में मेरा समस्त अस्तित्व विलीन-सा है, ये उद्भूत भावधाराएँ अब तेरी अंक-शरण ही अभयी प्रवीण-सा है। ~डाॅ सियाराम 'प...