Friday, 17 August 2018

तुम आओगी मेरे पास

तुम आओगी मेरे पास 
-------------------------
हाँ तुम्हे नसीब होंगे
सूरज की ऊष्मा के 
वो सभी टुकड़े जो 
मैंने समेटे है अपने 
आँचल में और वो 
भी जो होते है इकट्ठा 
मेरी ख्वाहिशों की 
गठरी में तुम्हारे 
जाने के बाद हां मैं 
नहीं करता तुम्हारी 
मज़बूरियों पर यकीं 
मुझे नहीं है भरोषा 
तुम्हारे चेहरे पर उभरते 
उस मज़बूरी के भाव पर 
क्योंकि मैंने पढ़ा है सुना
है की आँखों देखा और 
कानो सुना भी गलत हो 
सकता है इसलिए मुझे 
यकीं है सिर्फ मेरे मन पर  
जो हर पल मुझे एहसास 
दिलाता है की तुम्हे मुझसे 
वो बेइंतेहा प्यार है जो हीर 
को था अपने राँझा से और 
जिसके बल पर तुम भी एक
ना एक दिन अपनी सभी 
मज़बूरियों को अंगूठा दिखाकर  
कर आओगी मेरे पास वो भी 
सदा सदा के लिए बसाने अपना घर !  

No comments:

स्पर्शों

तेरे अनुप्राणित स्पर्शों में मेरा समस्त अस्तित्व विलीन-सा है, ये उद्भूत भावधाराएँ अब तेरी अंक-शरण ही अभयी प्रवीण-सा है। ~डाॅ सियाराम 'प...