Saturday, 19 August 2017

नाम लिखा मैंने अपनी सांसो पर

जिसको मैंने प्रेम 
किया उसका नाम
लिखा मैंने अपनी सांसो पर
और लिखा अपने रक्त के
बूंदो पर भी किन्यु की 
मैंने प्रेम किया था 
पर साँस भी बनी है
हवाओं से और रक्त भी 
बना है पानी से शायद
इसलिए पढ़ नहीं पायी वो
और सुन नहीं पायी वो 
अपना नाम ठीक से 
ठीक उसी तरह 
जिस तरह हवाओं और 
पानी पर लिखा नाम 
दीखता नहीं किसी को 
ये तो महसूसना पड़ता है 
आत्मा से 

No comments:

स्पर्शों

तेरे अनुप्राणित स्पर्शों में मेरा समस्त अस्तित्व विलीन-सा है, ये उद्भूत भावधाराएँ अब तेरी अंक-शरण ही अभयी प्रवीण-सा है। ~डाॅ सियाराम 'प...