Monday, 14 August 2017

चाँद की चांदनी


अपने प्रेम की 
कवितायेँ लिखने 
के बाद हर शाम 
जाता हु पार्क में 
ऊँचे ऊँचे पेड़ो के बीच से
झांकते चाँद की चांदनी 
को देखते हुए महसूस 
होता है किस कदर वो
चाँद के साथ रहती है 
आठों पहर और एक 
वो है जो कुछ पलो के
लिए आती है बाकी 
मेरे पास और बाकी के 
मेरे पलो को उदास कर
चली जाती है        

No comments:

स्पर्शों

तेरे अनुप्राणित स्पर्शों में मेरा समस्त अस्तित्व विलीन-सा है, ये उद्भूत भावधाराएँ अब तेरी अंक-शरण ही अभयी प्रवीण-सा है। ~डाॅ सियाराम 'प...