Tuesday, 8 October 2019

जमीं और आसमां


जमीं और आसमां 
के ठीक बीचों बीच 
बांधेंगे हम दोनों एक मचान 
तुम अगर जाओ बात मेरी मान 
तो बे दरों दीवारों का बनाएंगे 
वही छोटा सा एक अपना मकान !

No comments:

स्पर्शों

तेरे अनुप्राणित स्पर्शों में मेरा समस्त अस्तित्व विलीन-सा है, ये उद्भूत भावधाराएँ अब तेरी अंक-शरण ही अभयी प्रवीण-सा है। ~डाॅ सियाराम 'प...