Friday, 11 October 2019

जमीं आसमां !


कल जो अज़ीज़ इस जमीं का था
आज वो अज़ीज़ आसमां का हो गया;
कल जो एक पूरा का पूरा आसमां था;
आज वो इस जमीं का हो गया !

No comments:

स्पर्शों

तेरे अनुप्राणित स्पर्शों में मेरा समस्त अस्तित्व विलीन-सा है, ये उद्भूत भावधाराएँ अब तेरी अंक-शरण ही अभयी प्रवीण-सा है। ~डाॅ सियाराम 'प...