Saturday, 12 October 2019

अधूरापन !


अधूरापन !
मैं अब तक हूँ 
अधूरा और इस 
अधूरेपन ने रखी है    
मेरी इस अतृप्त प्यास 
को अब तक अधूरी
इस प्यास ने मेरी  
हर एक आरज़ू को 
नहीं होने दी है पूरी
इस अधूरी आरज़ू ने 
रखी है मेरी जुस्तजू 
को भी अब तक अधूरी 
ना जाने वो कौन से 
जिस्म में कैद है जन्मों 
से बिछुड़ा वो मेरा अपना 
अधूरा टुकड़ा !

No comments:

स्पर्शों

तेरे अनुप्राणित स्पर्शों में मेरा समस्त अस्तित्व विलीन-सा है, ये उद्भूत भावधाराएँ अब तेरी अंक-शरण ही अभयी प्रवीण-सा है। ~डाॅ सियाराम 'प...