Saturday, 30 December 2017

कलम थिरकने को मज़बूर दिखती है


बहुतों से सुना था
यु हर पल कहा
नहीं जाता की मैं 
तुमसे बेइंतेहा मोहबब्त
करता हु करता रहूँगा 
फिर बहुतों से सुना की  
रोज-रोज यु मोहोब्बत 
में डूबकर लिखना
मुमकिन नहीं होता
लेकिन मैं करू भी तो
क्या करू बोलो तुम
हर पल जब इतनी 
सिद्दत से जो याद 
आती हो तुम तो ये मेरी
अंगुलियां अपने आप 
कलम के साथ कागज़ 
पर थिरकने को मज़बूर 
सी दिखती है 

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