Saturday, 16 December 2017

काला धागा

हा ये सच है 
की एक दिन भी
शताब्दी सा महसूस  
होता है जब तुम होती हो 
मुझे दूर थोड़ी सी भी दूर ;
जाने किन्यु ये रात 
ओढ़ लेती है सुस्ती 
और सियाही से भी
स्याह परछाई घेर
लेती है मुझे अपने 
आगोश में और फिर मैं
तुम्हारे प्रेम को बुरी 
नज़र से बचाने के लिए
काला धागा जो बांधा
था मैंने अपनी कलाई में 
उसकी गांठे दुरुस्त 
करने लग जाता हु;
इस डर से की कंही 
गुस्से में मैं ही उसे 
तोड़ ना फेंकू कंही   !

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