Friday, 15 December 2017

सपनो का प्रवाह

उन पलों में 
ना जाने किन्यु
ये दिन किस जल्दी  
में होते है; मेरी लाख 
मिन्नतों के बाद भी 
कोई पल एक पल से 
लम्बा होता ही नहीं 
भागा चला जाता है ;
मेरे सपनो को रौंद कर
और बिखेर देता है ;
सूरज की लालिमा 
उस कमरे में मानो
सिन्दूर फैला हो वंहा; 
और फिर मेरे सपनो 
का प्रवाह तुम्हारे   
जाते ही पहले तो 
थमता है फिर धीरे-धीरे
टूट जाता है ; 

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