Saturday, 29 April 2017

"उम्मीद" से हैं








चिट्ठी पन्ने उसमे 
रखे कुछ निशाँ
पढ़ लेती हैं नजरे
आज भी अनकही बातें
इन्ही यादो से तो
कोई दिल के
करीब रहता है
फुहारें कुछ यूँ ही
आसमान के तन पर
छिटके हुए बादल
के टुकड़े
"उम्मीद" से हैं ....
और धरती पर
इन्तजार उसका
एक "शाही मेहमान "के
आगमन के इन्तजार
सा है
याद है मुझको ||

No comments:

स्पर्शों

तेरे अनुप्राणित स्पर्शों में मेरा समस्त अस्तित्व विलीन-सा है, ये उद्भूत भावधाराएँ अब तेरी अंक-शरण ही अभयी प्रवीण-सा है। ~डाॅ सियाराम 'प...