Saturday, 29 April 2017

ये बारिश की बूँदें,





सब कुछ कह 
लेने के बाद –
ये बारिश की बूँदें,
पत्तियों की सरसराहट,
ये महकी ठंडक,
मिटटी की खुशबू,
वो हलकी सी रौशनी,
इस भीगते बदन पर
एक हलकी सी सिरहन,
सब कितने अच्छे लगते हैं,
समय रुक जाता है,
एक नए प्रकाश में डूब
मन मंद-मंद मुस्काता है,
पत्थरों से भारी उन शब्दों का
सदियों का कुछ बोझ
सा उतर जाता है,
यूँ पट पर समक्ष खड़े हो
तुमसे सब कुछ कह लेने के बाद
बस कुछ अच्छा सा लगता है |

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