Thursday, 6 February 2020

नामांकरण !


नामांकरण !

निष्प्राण ह्रदय की दहलीज़ 
पर अनुभूतियों के मानचित्र 
विद्रोह कर अपना अस्तित्व 
संजोने लगते है !
विवश होकर अभिव्यक्तियों 
के काफिले भी उसके साथ साथ  
चलने लगते है !
ये देख ये अश्कों के नगीने भी 
जैसे एक एक कर बिखरने उनकी 
राह को भिगोने लगते है !
फिर दिल के मलाल भी अनुबंधित 
होकर आक्रोश की तलहटी में 
एकत्रित होने लगते है !
तब भावाग्नि के उच्च ताप से 
पिघलकर शब्द भी जैसे स्वतः  
ही टपकने लगने है ! 
फिर तुम उनका नामांकरण करती 
हो और उसे "गुस्सा" कह कर पुकारती 
हो तब तो जैसे दिल रोने ही लगता है !       

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