Monday, 17 February 2020

ए ज़िन्दगी !


ए ज़िन्दगी !

ए ज़िन्दगी मैं तंग आ गया हूँ  
तेरे इन नाज़ और नखरों से 
तेरी इस बेरुखी और मज़बूरियों से 
तेरे किये हर एक झूठे वादों से 
जी चाहता है अब इन झंझावातों से 
निकल आऊं और बहु बहते पानी सा 
बहु मद्धम मद्धम बहते पवन सा 
झर झर झरते उस ऊँचें झरने सा
निश्चिन्त हो हल्का हल्का सा 
और एक दिन चुपचाप शांत हो जाऊँ  
इसी प्रक्रिया में तुमसे बहुत दूर चला जाऊँ 
तेरे इन नखरों से तेरी इस बेरुखी से 
तेरी इन मज़बूरियों और झूठे वादों से 
ए ज़िन्दगी मैं तंग आ गया हूँ !  

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