Sunday, 23 February 2020

सांसों के जखीरे !



सांसों के जखीरे !

आसमां के सितारे मचलकर  
जिस पहर रात के हुस्न पर 
दस्तक दें !
निगोड़ी चांदनी जब लजाकर 
समंदर की बाँहों में समा कर 
सिमट जाए !
हवाओं की सर्द ओढ़नी जब 
आकर बिखरे दरख्तों के 
शानों पर !
उस पहर तुम चांदनी बन 
फलक की सीढ़ियों से निचे 
उतर आना ! 
फिर चुपके से मेरी इन हथेलियों 
पर तुम वो नसीब लिख कर 
जाना !
जिस के सामीप्य की चाहत में 
मैंने चंद सांसों के जखीरे अपने  
जिस्म की तलहटी में छुपा 
रखे है !     

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