Wednesday, 14 November 2018

तुम्हारे साथ बीते सारे लम्हात !

तुम्हारे साथ बीते सारे लम्हात !
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ऐसे ही पलों में लगता है मुझे 
जैसे ठीक से ही सहेजे है मैंने, 
तुम्हारे साथ बीते सारे लम्हात;

जब भी चाहा उन टुकड़ों को
समेट कर रखना मैंने तब 
हर वो टुकड़ा चुभ गया;

अंगुली में मेरे और बहने लगा  
वो आँखों की कोरों से मेरे;

लेकिन जब भी याद किया 
मैंने उन लम्हों को वो लम्हे
आकर मेरे कमरे में जैसे;

थिरकने लगे और कितने ही
कहकहे ठहाके लगाने लगे;

और कितने ही आहटों के साये 
मेरे कमरे की खिड़की में आकर 
छुप गए जैसे;

लुका-छुपी खेलते-खेलते जाने
किस दिशा से बहने लगी वही 
प्रेम की बयार और;

कमरे की छत से बरसने लगे 
हरश्रृंगार के फूल और फिर;

ऐसे ही पलों में लगने लगता है 
मुझे जैसे ठीक से ही सहेजे है मैंने, 
तुम्हारे साथ बीते सारे लम्हात !

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