Monday, 9 April 2018

मेरी सुबह थोड़ी बौराई सी


मेरी सुबह थोड़ी बौराई सी
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मेरी सुबह थोड़ी अलसाई सी थोड़े नखरों से भरी
थोड़ी शर्मीली भी है थोड़ी नादान भी है और मुझसे
थोड़ी परेशान भी है मेरी सुबह जब गिरा लेती है
एक लट अपने उभरे ललाट पर तब उसे यकीन होता है
की यही लट है जो खींच लाएगी मुझे उसके पास
और होता भी ऐसा ही है पास आकर मैं जब
चूम लेता हूँ उसके नयनाभिराम मुखड़े को
तब मेरी सुबह कह देती है कुछ ऐसा जो
सही नहीं होता मेरी नज़र में और मै हो जाता हूँ
नाराज उससे तब हंस कर कहती है वो मुझसे
की नाराज होकर ही तो ज्यादा पास आने देता हूँ
मै उसे और मेरी सुबह हो जाती है थोड़ी बौराई सी
मेरे ख़्वाबों की अंगडाई सी जीवन धारा सी मेरी
जीवन की पुरवाई सी मेरी सुबह मेरी है मै उसका हूँ
उसके नाज मेरे हैं उसके नखरे मेरे हैं मेरा प्यार उसका है
और मेरा गुस्सा ये तो बस एक बहाना है ऐसे ही उसे
कसकर पकड़ लेने का अपनी बाहों में उसे भर लेने का
और कहने का धीरे से इस बार तो गले लगे है
अगली बार दो से तीन हूँ जायेंगे और वो हंस देती है
जानती है की ये बस बहाना है उसे गले लगाने का
जाने मुझे कितना समझती है मेरी सुबह
और सिमट जाती है मुझमे हर सुबह मेरी सुबह ,,,,,,,,,,,

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